Tuesday, December 4, 2012

खामोशी की एक आवाज होती है




खामोश आँखों में कैद सपने,
आँसू बन कर बह जाते हैं
किसे फुर्सत है जो
सपनों को आंसुओं से
आजाद कर दे

सिले होठों की पुकार
थिरकती हंसी का गहना पहन
खामोशी से दफन हो जाती है
किसी फुर्सत है जो
अनसुनी पुकार को
फिर से आवाज दे दे।

मेहंदी लगी हथेलियाँ  
चूड़ियों की खनक में सज कर
शांत हो जाती हैं
किसे फुर्सत है जो
सो गए हाथों को
फिर से खनकना सीखा दे।

खामोश आवाजें
सदियाँ से अनसुनी रही हैं
किसे फुर्सत है जो
बंद दरवाजों को
फिर से खोल दे।