चादर की सलवटें सुनातीं हैं
बीती रात का एक अफसाना
तकिये का सीला कोना दिखाता
है, जख्म कोई सुहाना,
सितारे आसमान के भी थक जाते
हैं इंतज़ार करते हुए
जागी आँखों में देखते हैं
रात का तन्हा गुजरना ।
शीशे-सी चमकती हैं जब काली
स्याही रातों की,
झपकती नहीं है एक कनी भी इन
पलकों की,
कोई सुनता है सन्नाटे में जब
शोर की आवाज,
याद रह जाता है सपनों का तंग
गलियों से गुजरना।
अश्कों के समंदर लहराते हैं
खुले नैनों के तले,
बैठी है हर बूंद सहमी हुई
बंद पलकों से परे,
कहीं छलक न जाए पैमाना-ए दिल
मेरा,
छिपा कर औ सहेज कर रखा है
ख़जाना-ए-दिल वीराना।
कांटे पथ के लगते हैं अब तो
गुंचा ए बहार के,
धधकती झोंके हवा के झोंके भी सजते हैं ठंडी बयार से,
किसी और चीज की तमन्ना क्या
करे ‘लेखनी’ अब
के दामन तो मेरा भरा है
प्यार की सौगातों से,
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