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Friday, July 8, 2016

बचपन


निंदियाई आँखों को खोल कर
मंद-मंद मुस्काता बचपन,
बंद मुट्ठी को बार बार तान कर
मेरी ओर हाथ बढ़ाता बचपन।

घुटने के बल सरक कर,
डगमगाता सम्हल्ता बचपन,
तुतलाते बोलों से मन आँगन
जीवन बगिया महकाता बचपन।

मिट्टी के घरोंदों में घर ढूँढता,
पापा के जूते पहन ऑफिस जाता बचपन,

भूख नहीं कहकर मचलता, ज़िद करके
अपनी ही बात मनवाता बचपन।

पीछे मुढ़ कर,दूर तक देखने पर भी,
न दिखाई देता है बचपन,
आज खाली कागज सी जिंदगी पर
आड़ी-तिरछी लकीरें खिचने वाला बचपन,

याद आता है, वो भोला बचपन,
जिंदगी के सफर में,
किसी अंजान स्टेशन पर उतर गया
जैसे वो अंजान मुसाफिर का बचपन,
क्या मिल सकता है, फिर से
वो हमारा खोया बचपन,
मुंह-मांगी कीमत देकर भी
वापस लौटाया जा सकता है बचपन।



Sunday, June 5, 2016

रिश्ते


रिश्ते जिंदगी है या जिंदगी से रिश्ते,


जिंदगी बीत गयी बनते बिगड़ते,


रिश्तों की जिंदगी और जिंदगी के रिश्ते।





मन की डोर से बंधे,


सहलाते, बहलाते,लुभाते, मन के रिश्ते,


प्यार से झुकते,प्यार के लिए झुकते,


मन से जुड़े, मन तक जुड़े,


रुलाते, हँसाते, जिंदगी के रिश्ते।





जाने-पहचाने, फिर भी अनजाने,


मन से बांधे, फिर भी मन से बेगाने,


क्यूँ ये होते हैं, मन के दीवाने,


रिश्तों से पहचान, पहचान से रिश्ते,


अनजाने-पहचाने जिंदगी के रिश्ते।






मुश्किल से जुड़ते,पल में टूट जाते,


सिमटते, बिखरते, बनते, संवरते,


यादों में बसते, खुद याद बन जाते,


यादों से निकल सामने आ जाते,


भूले भटके, जिंदगी के रिश्ते।





होठों की मुस्कान, जीने का अरमान,


खुद से खुद की पहचान कराते ये रिश्ते,


आँखों के आँसू, साँसो की डोर,


सीने में काँच जैसे चुभते ये रिश्ते,


कोमल नाजुक कुछ कठोर ये रिश्ते।





शब्द बनकर कागज पर उतरते,


गीत बनकर होठों पर सजते,


भाव बनकर गीत बन जाते,


अहसास बनकर गजल बन जाते,


लेखनी की स्याही में सिमटते ये रिश्ते।