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Friday, July 8, 2016

बचपन


निंदियाई आँखों को खोल कर
मंद-मंद मुस्काता बचपन,
बंद मुट्ठी को बार बार तान कर
मेरी ओर हाथ बढ़ाता बचपन।

घुटने के बल सरक कर,
डगमगाता सम्हल्ता बचपन,
तुतलाते बोलों से मन आँगन
जीवन बगिया महकाता बचपन।

मिट्टी के घरोंदों में घर ढूँढता,
पापा के जूते पहन ऑफिस जाता बचपन,

भूख नहीं कहकर मचलता, ज़िद करके
अपनी ही बात मनवाता बचपन।

पीछे मुढ़ कर,दूर तक देखने पर भी,
न दिखाई देता है बचपन,
आज खाली कागज सी जिंदगी पर
आड़ी-तिरछी लकीरें खिचने वाला बचपन,

याद आता है, वो भोला बचपन,
जिंदगी के सफर में,
किसी अंजान स्टेशन पर उतर गया
जैसे वो अंजान मुसाफिर का बचपन,
क्या मिल सकता है, फिर से
वो हमारा खोया बचपन,
मुंह-मांगी कीमत देकर भी
वापस लौटाया जा सकता है बचपन।



Monday, February 11, 2013

यादें





होठों पर मुस्कान कभी,
आँखों में नमी लाती हैं यादें,
बीते लम्हों को आज में
दोबारा जिंदा कर जाती हैं यादें,

गीली रेत के निशान बन कर,


तो कभी,
पत्थर पर खिची लकीर बन कर,
जीने का सहारा बनती हैं,
तो कभी,
अशकों का जरिया बनती हैं, यादें,

पतझर की सूखी डाल में अटकी
पीली पांत सी
गुलाब-शूल सी दिल में
चुभती हैं यह यादें,

यह यादें ही हैं,
जो, हमें जिंदा रखती हैं,

यह यादें ही हैं
जो हमें जीने नहीं देती हैं।