Saturday, December 17, 2011

सिर्फ तुम

चाँद की हर कला में
सूरज की हर किरण में
बारिश की बरसती बूंदो में
पलकों की झिमिलाती झालर में
संगीत के हर साज़ में,
साज के हर सुर में
पहली ओस की पायल में
फूलों की हर शै में
भवरों की उस गुंजन में
होठों की हर जुंबिश में
खनकती चूड़ियों की हर खनकार में
पायल की हर रून-झुन में

बस तुम हो
तुम ही तुम हो

Thursday, October 20, 2011

सवाल


सवालों के घेरों में घिरी है ज़िंदगी
हर नया पल एक नया सवाल को जन्म देता है
हर अगला पल पिछले सवाल का जवाब ढूंढ लेता है
 ये एक चक्रव्युह है
जहां इंसान बस सवाल बन कर रह जाता है

सुबह से शाम तक बस सवाल ही सवाल
रात से सुबह तक बस
सवाल ही सवाल

प्रश्न-चिन्ह बन कर रह गई है ज़िंदगी
खुद अपने से ही सवाल पूछते हैं,

यहाँ क्यूँ हैं हम
कहाँ जायेंगे यहाँ से हम
कहाँ से आये और
किस दिशा में जाएंगे हम


क्यूँ नहीं ढूंढ लेते
कुछ सवालों के जवाब हम

कब होगा सवालों का
अंत-हीन सिलसिला



Saturday, October 8, 2011

बदलते सपने



वक़्त बदल जाता है,
सपने बदल जाते हैं,
बदलता वक़्त सपनों को
भी बदल जाता है।

मुसकुराते हुए पहले सपने,
कब आँख मूँद कर सो जाते हैं;
उन सपनों तक जाने वाले रास्ते ,
कब, तीखा मोड़ लेकर खो जाते हैं,
यह वक़्त को भी नहीं पता चलता।

उड़ते हुए पल अपने साथ,
सध्यजात औ पूर्णता की दहलीज
पर पहुंचे हुए सपने ,
पलों की पंखो पर सवार होकर,
क्षितिज बिन्दु में गुम हो जाते हैं।

उनकी जगह चुपके से
आ कर बैठ जाते  हें,
अनसोचे अनदेखे अंछुए
कोरे नकोर नवीन स्वपन,
पल की किस क्षण में,
हमसफर, हमकदम बन जाते हें,
यह वक़्त भी नहीं जानता।

क्या जानता है कोई ,
बदलती खुशियाँ बदलते गम,
सपनों के अधूरे पूरे होने के
क्षण बादल देते हैं।

शायद, यही ज़िंदगी का सच है
बदलता वक़्त सपनों की ज़िंदगी भी
बदल देता है।

Tuesday, September 13, 2011

MY MOM


Sometimes I catch myself 
Thinking, "When I phone,
I can talk of this or that!" 
Then remember, I'm alone

She was always there 
To answer my calls - 
To listen to my "small talk" 
Or when I climbed the walls.

At times, I didn't feel like talking 
And somehow, she understood - 
Didn't say she wished I'd call 
Or make me feel like I should. 


Now, I wish I would have 
More times, to show I cared - 
To say, just how important 
Were, all those times we shared. 

I could have shown my love 
So much more than I did - 
I never, did it enough 
Even when I was a kid.

Now it's too late to do or say 
All those things I wish I had - 
No way to ease the pain inside
When my heart is sad. 

She was my "anchor" to this life - 
The "rock", that I clung to - 
The place, where I could turn 
When, nowhere else would do.
Now, the ravages of time 
Have worn my "rock" away - 
And all I have to cling to 
Are memories of yesterday.



Sunday, June 5, 2011

आसमान



सूरज के ढलते ही
कभी नीले, कभी ऊदे
और कभी गुलाबी- पीले
रंगों से रंगोली
सजाता है आसमान
बादलों के झरोखों से झांकता
सुनहरी किरणों की पोटली समेटता
संध्या से आँख-मिचोली खेलता आसमान

सितारों की चादर को ओढ़ कर
रात भर चाँद से खेलता कभी गरजता
कभी चमकता और कभी समाधी लगाकर
शांत चित से प्राची की दीवारों पर
सिन्दूर बिखेरता आसमान

जिन्दगी के हर रंग से सजा मेरा आसमान
कभीं ख़ुशी और कभी आंसू से खिला
मेरा आसमान
कैसे कैसे रंग बदलता है आसमान
सुबह और शाम के खिलोनों से खेलता
जिन्दगी से भरा मेरा आसमान

Tuesday, March 8, 2011

Woman is a boon

Heated discussions and debates still held relentless
The battle between the sexes ever fresh and endless
She is Easwar's one half and made of Man's back bone
Still she fights for equality, though she knows she is unique
She is like a flower, emitting the hues of love and care
Nothing is as enticing as her beauty, so sensuous and soft
Her heart is a honeyed nest of varied intense emotions
But many withers in waste as not well nurtured and nourished (this is
very sad- bala)
She is like a lamp, brightens your life if let to shine and glow
She is multi-powered, even flames as sun tireless if required
Like a candle melts and merges, if enshrined in your hearts
But never cage her in a pot to flicker, it wipes off her vitality
So similar to mother earth in patience and forbearance
Like a river impeding sorrows and imparting happiness
Serene as breeze, fierce as storm and whirly as wind
Her mind deeper than oceans and vaster than the sky
She cooks for you and hooks you with her passion
She confuses you but induces you with her thoughts
She falls in love and hails you as her prince charming
She mothers you and cheers you by her pampering
Men and Women, better not to think of them apart
If she is a poem he is the lyrics, just need to be tuned
If she is the music he is the maestro playing her well
If she is life he is her breath, together they exist
She is your 'Sakthi', be pious she keeps you poised
Beware she is 'Kaali' too; the strings are in your hands only!!!

सपने

कुछ सपनों को जो पंख दिए,
वो खुले आसमान में उड़ने लगे,
बादलों की छांव मिले,
तो कभी तारों की महफिल सजी।
नरम-नरम हवा के पालनों में पलने लगे,
कोरे-कोरे ये सपने रंगों से खेलने लगे,
सुनहरी धूप की धागों से एक नया जहाँ बुनते हुए,
बिखरे-बिखरे यह सपने अपने-आप में ही सिमटने लगे।
लम्बी-लम्बी राहों पर नन्हें-नन्हें कुछ कदम,
मासूम यह सपने मंज़िल की तलाश में चल पड़े.
दीपक की लौ में सूरज की रोशनी नहीं मिली,
तो थककर यह सपने उसी लौ में जलने लगे।
वक्त आगे निकल गया, सपने पीछे छूट गए,
कुछ ठहर गए, कुछ टूट गए, कुछ खुद पर ही हंसने लगे,
ज़िन्दगी के दांव में, खुद ज़िन्दगी को हार के,
अब इन अधूरे सपनो के सौदे होने लगे।
चलते-चलते खो गये, अपनी ही धड़कन से दूर हो गए,
पीछे मुड़े तो दिखा कहानी बनके बिकता अपना ही चहरा,
फिर भी रुका नहीं सांसों और धड़कनों का यह सुस्त कारवां
क्यूंकि टिमटिमा रहा था अभी भी एक सपना सितारा बन के।

Friday, March 4, 2011

अनंत असीम आकाश




मेरी खिड़की से झांकता आकाश
सुनहरी धूप से चमकता
कभी ओस की नमी से भीगता
सावन की बूंदों में नहाता
ए़क बच्चे की तरह ठुमकता आकाश

दीवाली की जगमगाहट में मुस्कुराता
होली के रंगों से खिलखिलाता
हर रात को सितारों की चादर ओड़ कर
सुबह के इंतज़ार में ऊंघता
रोज सूरज का स्वागत करता है आकाश

मेरी खिड़की से झांकता आकाश
सिन्दूरी सूरज से सज-धज कर
शाम के रुपहले घूँघट से निहारता
सावंला सलोना आकाश

शरारती बच्चा सा पल पल
रंग बदलता
आतुर प्रेमी जैसा
धरा को हर पल
अपनी बाँहों में भरने को उत्सुक

मेरी आँगन में उतर आया
नया निराला अनोखा
अनंत असीम आकाश

Thursday, February 10, 2011

कुछ कहना है

चलो आज फिर से कलम उठाई जाये
कुछ नया और कुछ पुराना
दर्द हो या अफसाना
कागज पर उतार लिया जाये l

बसंती हवा के साथ साथ
खिड़की से चली आयी है
खट्टे मीठे पलों की यादें ,

अपनो के साथ खुल कर हँसना
रूठना मनाना
पहरों बतियाना
बात बेबात पर
यूँ ही ठहाके लगाना

सब कहीं पीछे छूट गया l

मौसम की तरह जिनदगी ने ली अंगड़ाई है
चारो और मस्तानी रुत सी छाही है

फिजा में आज फैले हैं
नयी नवेली चाहतें और सपने
संजोये-सवारें हैं जो मिल कर हमदोनों नें
हम दोनों का ..
पल पल
रूठना मनाना
बात बेबात पर
यूँ ही शरमा जाना, इठला जाना,

आँचल में बिखरा-सिमटा सा है
अनोखा अनमोल सलोना सा प्यार
सबसे छुपा कर सबको दिखा कर
देखे सपनों का निराला संसार
पलकों पर आ अटका है
देखे अनदेखे सपनों का खुमार

कहने को है बहुत कुछ
शब्द है कम
लिखने की आदत रही नहीं
चेहरे पर लिखी इबारत पढने
लगे हैं हम







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