Sunday, September 17, 2017

अनोखी इच्छा


 मन के कोने में हुई सुबुगाहट
चलो आज पत्थरों से दिल लगाएँ
आस-पास चलते दिल तो देखे
आज किसी कंकड़ से मिल बतियाएँ
 सड़क किनारे पड़ा एक अकेला
किसी बड़े टुकड़े का हिस्सा कभी था
बिछड़ कर उससे आज यूँ ही पड़ा है

सीने से अपने उसे आज लगाएँ
 चाहा होगा उसने भी कभी एक पल में
बनूँ हिस्सा किसी मंदिर की चौखट का
महल की दीवार में लग जाऊँ या मैं
मस्जिद के नहीं तो मैं काम आऊँ
 टूट कर लेकिन बिखर गया वो
अपनों से हाथ उसका छूट गया तो
मौसम के थपेड़ों ने भी न बक्शा उसे
गले अपने लगा के उसे फिर जिलाएँ
 मिलेगा धूल में अब या यूं ही रहेगा
किसी की चोट का जरिया या बनेगा
“लेखनी” की रोशनी में उसे फिर सजाएँ
चलो आज किसी पत्थर से दिल लगाएँ

Thursday, June 15, 2017

एक तराना

चादर की सलवटें सुनातीं हैं बीती रात का एक अफसाना 

तकिये का सीला कोना दिखाता है, जख्म  कोई सुहाना,

सितारे आसमान के भी थक जाते हैं इंतज़ार करते हुए

जागी आँखों में देखते हैं रात का तन्हा गुजरना ।

शीशे-सी चमकती हैं जब काली स्याही रातों की,
झपकती नहीं है एक कनी भी इन पलकों की,
कोई सुनता है सन्नाटे में जब शोर की आवाज,

याद रह जाता है सपनों का तंग गलियों से गुजरना।

अश्कों के समंदर लहराते हैं खुले नैनों के तले,
बैठी है हर बूंद सहमी हुई बंद पलकों से परे,
कहीं छलक न जाए पैमाना-ए दिल मेरा,

छिपा कर औ सहेज कर रखा है ख़जाना-ए-दिल वीराना।

कांटे पथ के लगते हैं अब तो गुंचा ए बहार के,
धधकती झोंके हवा के झोंके  भी सजते हैं ठंडी बयार से,
किसी और चीज की तमन्ना क्या करे लेखनी अब
के दामन तो मेरा भरा है प्यार की सौगातों से,                                                                                                                                                                                                            







                                                                                                                                                                         









Monday, April 10, 2017

एक ख्वाइश

ज़िंदगी के कुछ पल चुराने हैं अभी
सुकून बहुत मिल चुका है लेकिन
कुछ पल फिर भी सुहाने बनाने हैं अभी ।

फूलों के रंग से राहें दमकने  लगीं ,
सूरज-चाँद तारों से ज़िंदगी चमकने लगीं,
कमी है कुछ फिर भी इस मन में अभी
कुछ और तारे तोड़ लाने हैं अभी ।

सुनहरी रेत की सेज बिछी सी लगती है,
सितारों की ओढनी सजी सी लगती है,
किरणों के धनक से खिली है ज़िंदगी,
सूरज-चाँद को किनारे लगाना है अभी।

जीवन-लहरों के शोर से गूँजता है आसमां मेरा,
फ़ूल-काँटों के मेल से सजा गुलिस्ताँ मेरा,
सोच में है लेखनीकुदरत के इस तोहफे से ,
रची-बसी बगिया को कुछ और सजाना है अभी।



Thursday, March 2, 2017

ज़िंदगी क्या दिखाना चाहती है मुझे


कभी सूखी ज़मीन तो कभी
गीली रेत पर चलाती है मुझे,
ज़िंदगी तू बता ज़रा,
क्या दिखाना चाहती है मुझे।

हर रंग को तेरे अपनाया है मैंने,
हर ढंग से जिंदगी को जिया है मैंने,
फिर भी नाखुश है तू बता,
और क्या रंग-ढंग दिखाना चाहती है मुझे।

फूल-कांटे एक दामन में समेटे हैं मैंने,
हर सुर के गीत सभी लबों पे सजाये हैं मैंने,
फिर भी सुर खामोश क्यूँ है,
कौन सा सुर से सजाना चाहती है मुझे।

थकूँगी नहीं, रुकूँगी नहीं, गिरूंगी नहीं,
ये ठाना है आज मैंने,
“लेखनी” की लय में बहुत ताकत है अभी,
जिंदगी यही बताना चाहती हूँ तुझे।