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Thursday, March 2, 2017

ज़िंदगी क्या दिखाना चाहती है मुझे


कभी सूखी ज़मीन तो कभी
गीली रेत पर चलाती है मुझे,
ज़िंदगी तू बता ज़रा,
क्या दिखाना चाहती है मुझे।

हर रंग को तेरे अपनाया है मैंने,
हर ढंग से जिंदगी को जिया है मैंने,
फिर भी नाखुश है तू बता,
और क्या रंग-ढंग दिखाना चाहती है मुझे।

फूल-कांटे एक दामन में समेटे हैं मैंने,
हर सुर के गीत सभी लबों पे सजाये हैं मैंने,
फिर भी सुर खामोश क्यूँ है,
कौन सा सुर से सजाना चाहती है मुझे।

थकूँगी नहीं, रुकूँगी नहीं, गिरूंगी नहीं,
ये ठाना है आज मैंने,
“लेखनी” की लय में बहुत ताकत है अभी,
जिंदगी यही बताना चाहती हूँ तुझे।




Sunday, June 5, 2016

रिश्ते


रिश्ते जिंदगी है या जिंदगी से रिश्ते,


जिंदगी बीत गयी बनते बिगड़ते,


रिश्तों की जिंदगी और जिंदगी के रिश्ते।





मन की डोर से बंधे,


सहलाते, बहलाते,लुभाते, मन के रिश्ते,


प्यार से झुकते,प्यार के लिए झुकते,


मन से जुड़े, मन तक जुड़े,


रुलाते, हँसाते, जिंदगी के रिश्ते।





जाने-पहचाने, फिर भी अनजाने,


मन से बांधे, फिर भी मन से बेगाने,


क्यूँ ये होते हैं, मन के दीवाने,


रिश्तों से पहचान, पहचान से रिश्ते,


अनजाने-पहचाने जिंदगी के रिश्ते।






मुश्किल से जुड़ते,पल में टूट जाते,


सिमटते, बिखरते, बनते, संवरते,


यादों में बसते, खुद याद बन जाते,


यादों से निकल सामने आ जाते,


भूले भटके, जिंदगी के रिश्ते।





होठों की मुस्कान, जीने का अरमान,


खुद से खुद की पहचान कराते ये रिश्ते,


आँखों के आँसू, साँसो की डोर,


सीने में काँच जैसे चुभते ये रिश्ते,


कोमल नाजुक कुछ कठोर ये रिश्ते।





शब्द बनकर कागज पर उतरते,


गीत बनकर होठों पर सजते,


भाव बनकर गीत बन जाते,


अहसास बनकर गजल बन जाते,


लेखनी की स्याही में सिमटते ये रिश्ते।