Showing posts with label धरा. Show all posts
Showing posts with label धरा. Show all posts

Saturday, December 20, 2014

साथ-साथ




नदी के दो किनारे
साथ चलते हैं पर मिलते कभी नहीं
जुड़े हैं नदी के बहाव से,
साथ बहते हैं, पर जुडते कभी नहीं,

क्षितिज के छोर पर धरा-गगन,
मिले दिखाई देते हैं पर मिलते कभी नहीं
हमसफर तय करते हैं सफर साथ चलते हुए,
चलते हैं साथ मगर, फासले फिर भी मिटते नहीं।

प्रकर्ति का शायद नियम भी यही है,
मिलते हुए भी अलग-अलग रहना,
साथ होते हुए भी एक-दूसरे से जुदा रहना,
लेकिन ....
जुदा होते हुए भी जुदा होते नहीं।

साथ-साथ चलने वाले कदम भी
एक राह के राहगीर होते हुए भी
एक शरीर से जुड़े होते हुए भी,
एक जान होते नहीं,
एक प्राण होते नहीं........