आज़ाद गगन में टहलती,
काले घने बादलों से अचानक निकली,
नन्हें बच्चे से मचल कर फिसली,
बारिश की एक बूंद।
खुले आकाश में टहलती हुई,
इन्द्र धनुषी झूले में झूलती हुई,
सरर से धरती पर आ गिरि ,
बारिश की एक बूंद।
सपना बन कर कभी आँख में बसी,
अश्कों में ढल कर कभी होंठों पर रुकी,
खुशी में कभी बरबस निकल पड़ी,
बारिश की एक बूंद।
सूखी ज़मीन की प्यास बुझाती कभी,
सैलाब बन कर सब कुछ मिटाती कभी,
फिर भी......
नदी में मिल कर सागर में समा जाने के लिए,
बादलों से निकल पड़ी
बारिश की एक बूंद
No comments:
Post a Comment