कितनी गिरहें खोली हैं,
कितनी गिरहें और बाकी हैं।
हर कदम हर राह पर,
ज़िंदगी के हर मोड पर,
कितने उतार उतरे हैं,
कितने उतार और बाकी हैं।
साँस के हर तार में,
जीवन की हर धार में,
कितने सुर बजते हैं,
कितने सुर और बाकी हैं।
लेखनी की स्याही में
स्याही की हर बूंद में
कितने रंग घोले हैं,
कितने रंग बाकी हैं।