Monday, April 10, 2017

एक ख्वाइश

ज़िंदगी के कुछ पल चुराने हैं अभी
सुकून बहुत मिल चुका है लेकिन
कुछ पल फिर भी सुहाने बनाने हैं अभी ।

फूलों के रंग से राहें दमकने  लगीं ,
सूरज-चाँद तारों से ज़िंदगी चमकने लगीं,
कमी है कुछ फिर भी इस मन में अभी
कुछ और तारे तोड़ लाने हैं अभी ।

सुनहरी रेत की सेज बिछी सी लगती है,
सितारों की ओढनी सजी सी लगती है,
किरणों के धनक से खिली है ज़िंदगी,
सूरज-चाँद को किनारे लगाना है अभी।

जीवन-लहरों के शोर से गूँजता है आसमां मेरा,
फ़ूल-काँटों के मेल से सजा गुलिस्ताँ मेरा,
सोच में है लेखनीकुदरत के इस तोहफे से ,
रची-बसी बगिया को कुछ और सजाना है अभी।



No comments:

Post a Comment