Friday, December 26, 2014

कुछ बाकी है अभी.....






बहुत कुछ जान लिया है
फिर भी कुछ जानना बाकी है अभी;
काफी कुछ पहचान लिया खुद को,
फिर भी बहुत कुछ पहचानना बाकी है अभी।

राहें ढूँढी हैं प्यार करने की मगर,
मुश्किलों के पड़ाव तय करने बाकी हैं अभी;
अहसासों के समुंदर जीत लिए हैं बहुत, लेकिन,
नजरियों के भँवर पार करने बाकी हैं अभी।

रिश्तों के बाग-बगीचे खिल गए अनगिनत,
छोटी-छोटी खुशियों की कलियों का खिलना बाकी है अभी;
नन्हें नन्हें कदमों से सारा जग तय तो कर लिया है लेकिन,
उम्मीदों के छोटे छोटे पड़ाव तय करने बाकी हैं अभी।

बहुत कुछ देखा और लिखा जा चुका है अब तक,
बहुत कुछ सुना और कहा जा चुका है अब तक;
धरती को कागज और अंबर को कैनवास बना लिखने के लिए
लेखनी का अनंत सफर बाकी है अभी......



Saturday, December 20, 2014

साथ-साथ




नदी के दो किनारे
साथ चलते हैं पर मिलते कभी नहीं
जुड़े हैं नदी के बहाव से,
साथ बहते हैं, पर जुडते कभी नहीं,

क्षितिज के छोर पर धरा-गगन,
मिले दिखाई देते हैं पर मिलते कभी नहीं
हमसफर तय करते हैं सफर साथ चलते हुए,
चलते हैं साथ मगर, फासले फिर भी मिटते नहीं।

प्रकर्ति का शायद नियम भी यही है,
मिलते हुए भी अलग-अलग रहना,
साथ होते हुए भी एक-दूसरे से जुदा रहना,
लेकिन ....
जुदा होते हुए भी जुदा होते नहीं।

साथ-साथ चलने वाले कदम भी
एक राह के राहगीर होते हुए भी
एक शरीर से जुड़े होते हुए भी,
एक जान होते नहीं,
एक प्राण होते नहीं........