लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है...........
Sunday, September 17, 2017
Thursday, June 15, 2017
एक तराना
चादर की सलवटें सुनातीं हैं
बीती रात का एक अफसाना
तकिये का सीला कोना दिखाता
है, जख्म कोई सुहाना,
सितारे आसमान के भी थक जाते
हैं इंतज़ार करते हुए
जागी आँखों में देखते हैं
रात का तन्हा गुजरना ।
शीशे-सी चमकती हैं जब काली
स्याही रातों की,
झपकती नहीं है एक कनी भी इन
पलकों की,
कोई सुनता है सन्नाटे में जब
शोर की आवाज,
याद रह जाता है सपनों का तंग
गलियों से गुजरना।
अश्कों के समंदर लहराते हैं
खुले नैनों के तले,
बैठी है हर बूंद सहमी हुई
बंद पलकों से परे,
कहीं छलक न जाए पैमाना-ए दिल
मेरा,
छिपा कर औ सहेज कर रखा है
ख़जाना-ए-दिल वीराना।
कांटे पथ के लगते हैं अब तो
गुंचा ए बहार के,
धधकती झोंके हवा के झोंके भी सजते हैं ठंडी बयार से,
किसी और चीज की तमन्ना क्या
करे ‘लेखनी’ अब
के दामन तो मेरा भरा है
प्यार की सौगातों से,
Monday, April 10, 2017
एक ख्वाइश
ज़िंदगी
के कुछ पल चुराने हैं अभी
सुकून बहुत
मिल चुका है लेकिन
कुछ पल
फिर भी सुहाने बनाने हैं अभी ।
फूलों के
रंग से राहें दमकने लगीं ,
सूरज-चाँद
तारों से ज़िंदगी चमकने लगीं,
कमी है
कुछ फिर भी इस मन में अभी
कुछ और
तारे तोड़ लाने हैं अभी ।
सुनहरी
रेत की सेज बिछी सी लगती है,
सितारों की
ओढनी सजी सी लगती है,
किरणों के
धनक से खिली है ज़िंदगी,
सूरज-चाँद
को किनारे लगाना है अभी।
जीवन-लहरों
के शोर से गूँजता है आसमां मेरा,
फ़ूल-काँटों
के मेल से सजा गुलिस्ताँ मेरा,
सोच में है
‘लेखनी’कुदरत के इस तोहफे से ,
रची-बसी बगिया
को कुछ और सजाना है अभी।
Thursday, March 2, 2017
ज़िंदगी क्या दिखाना चाहती है मुझे
कभी सूखी ज़मीन तो कभी
गीली रेत पर चलाती है मुझे,
ज़िंदगी तू बता ज़रा,
क्या दिखाना चाहती है मुझे।
हर रंग को तेरे अपनाया है मैंने,
हर ढंग से जिंदगी को जिया है मैंने,
फिर भी नाखुश है तू बता,
और क्या रंग-ढंग दिखाना चाहती है मुझे।
फूल-कांटे एक दामन में समेटे हैं मैंने,
हर सुर के गीत सभी लबों पे सजाये हैं मैंने,
फिर भी सुर खामोश क्यूँ है,
कौन सा सुर से सजाना चाहती है मुझे।
थकूँगी नहीं, रुकूँगी नहीं, गिरूंगी नहीं,
ये ठाना है आज मैंने,
“लेखनी” की लय में बहुत ताकत है अभी,
जिंदगी यही बताना चाहती हूँ तुझे।
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