ज़िंदगी
के कुछ पल चुराने हैं अभी
सुकून बहुत
मिल चुका है लेकिन
कुछ पल
फिर भी सुहाने बनाने हैं अभी ।
फूलों के
रंग से राहें दमकने लगीं ,
सूरज-चाँद
तारों से ज़िंदगी चमकने लगीं,
कमी है
कुछ फिर भी इस मन में अभी
कुछ और
तारे तोड़ लाने हैं अभी ।
सुनहरी
रेत की सेज बिछी सी लगती है,
सितारों की
ओढनी सजी सी लगती है,
किरणों के
धनक से खिली है ज़िंदगी,
सूरज-चाँद
को किनारे लगाना है अभी।
जीवन-लहरों
के शोर से गूँजता है आसमां मेरा,
फ़ूल-काँटों
के मेल से सजा गुलिस्ताँ मेरा,
सोच में है
‘लेखनी’कुदरत के इस तोहफे से ,
रची-बसी बगिया
को कुछ और सजाना है अभी।