रिश्ते जिंदगी है या जिंदगी से रिश्ते,
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जिंदगी बीत गयी बनते बिगड़ते,
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रिश्तों की जिंदगी और जिंदगी के रिश्ते।
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मन की डोर से बंधे,
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सहलाते, बहलाते,लुभाते, मन के रिश्ते,
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प्यार से झुकते,प्यार के लिए झुकते,
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मन से जुड़े, मन तक जुड़े,
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रुलाते, हँसाते, जिंदगी के रिश्ते।
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जाने-पहचाने, फिर भी अनजाने,
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मन से बांधे, फिर भी मन से बेगाने,
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क्यूँ ये होते हैं, मन के दीवाने,
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रिश्तों से पहचान, पहचान से रिश्ते,
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अनजाने-पहचाने जिंदगी के रिश्ते।
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मुश्किल से जुड़ते,पल में टूट जाते,
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सिमटते, बिखरते, बनते, संवरते,
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यादों में बसते, खुद याद बन जाते,
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यादों से निकल सामने आ जाते,
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भूले भटके, जिंदगी के रिश्ते।
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होठों की मुस्कान, जीने का अरमान,
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खुद से खुद की पहचान कराते ये रिश्ते,
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आँखों के आँसू, साँसो की डोर,
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सीने में काँच जैसे चुभते ये रिश्ते,
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कोमल नाजुक कुछ कठोर ये रिश्ते।
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शब्द बनकर कागज पर उतरते,
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गीत बनकर होठों पर सजते,
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भाव बनकर गीत बन जाते,
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अहसास बनकर गजल बन जाते,
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‘लेखनी’ की स्याही में सिमटते ये रिश्ते।
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लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है...........
Sunday, June 5, 2016
रिश्ते
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