Thursday, October 20, 2011

सवाल


सवालों के घेरों में घिरी है ज़िंदगी
हर नया पल एक नया सवाल को जन्म देता है
हर अगला पल पिछले सवाल का जवाब ढूंढ लेता है
 ये एक चक्रव्युह है
जहां इंसान बस सवाल बन कर रह जाता है

सुबह से शाम तक बस सवाल ही सवाल
रात से सुबह तक बस
सवाल ही सवाल

प्रश्न-चिन्ह बन कर रह गई है ज़िंदगी
खुद अपने से ही सवाल पूछते हैं,

यहाँ क्यूँ हैं हम
कहाँ जायेंगे यहाँ से हम
कहाँ से आये और
किस दिशा में जाएंगे हम


क्यूँ नहीं ढूंढ लेते
कुछ सवालों के जवाब हम

कब होगा सवालों का
अंत-हीन सिलसिला



Saturday, October 8, 2011

बदलते सपने



वक़्त बदल जाता है,
सपने बदल जाते हैं,
बदलता वक़्त सपनों को
भी बदल जाता है।

मुसकुराते हुए पहले सपने,
कब आँख मूँद कर सो जाते हैं;
उन सपनों तक जाने वाले रास्ते ,
कब, तीखा मोड़ लेकर खो जाते हैं,
यह वक़्त को भी नहीं पता चलता।

उड़ते हुए पल अपने साथ,
सध्यजात औ पूर्णता की दहलीज
पर पहुंचे हुए सपने ,
पलों की पंखो पर सवार होकर,
क्षितिज बिन्दु में गुम हो जाते हैं।

उनकी जगह चुपके से
आ कर बैठ जाते  हें,
अनसोचे अनदेखे अंछुए
कोरे नकोर नवीन स्वपन,
पल की किस क्षण में,
हमसफर, हमकदम बन जाते हें,
यह वक़्त भी नहीं जानता।

क्या जानता है कोई ,
बदलती खुशियाँ बदलते गम,
सपनों के अधूरे पूरे होने के
क्षण बादल देते हैं।

शायद, यही ज़िंदगी का सच है
बदलता वक़्त सपनों की ज़िंदगी भी
बदल देता है।