Thursday, October 20, 2011

सवाल


सवालों के घेरों में घिरी है ज़िंदगी
हर नया पल एक नया सवाल को जन्म देता है
हर अगला पल पिछले सवाल का जवाब ढूंढ लेता है
 ये एक चक्रव्युह है
जहां इंसान बस सवाल बन कर रह जाता है

सुबह से शाम तक बस सवाल ही सवाल
रात से सुबह तक बस
सवाल ही सवाल

प्रश्न-चिन्ह बन कर रह गई है ज़िंदगी
खुद अपने से ही सवाल पूछते हैं,

यहाँ क्यूँ हैं हम
कहाँ जायेंगे यहाँ से हम
कहाँ से आये और
किस दिशा में जाएंगे हम


क्यूँ नहीं ढूंढ लेते
कुछ सवालों के जवाब हम

कब होगा सवालों का
अंत-हीन सिलसिला



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