वक़्त बदल जाता है,
सपने बदल जाते हैं,
बदलता वक़्त सपनों को
भी बदल जाता है।
मुसकुराते हुए पहले सपने,
कब आँख मूँद कर सो जाते
हैं;
उन सपनों तक जाने वाले
रास्ते ,
कब, तीखा मोड़ लेकर खो जाते हैं,
यह वक़्त को भी नहीं पता
चलता।
उड़ते हुए पल अपने साथ,
सध्यजात औ पूर्णता की दहलीज
पर पहुंचे हुए सपने ,
पलों की पंखो पर सवार होकर,
क्षितिज बिन्दु में गुम
हो जाते हैं।
उनकी जगह चुपके से
आ कर बैठ जाते हें,
अनसोचे अनदेखे अंछुए
कोरे नकोर नवीन स्वपन,
पल की किस क्षण में,
हमसफर, हमकदम बन जाते हें,
यह वक़्त भी नहीं जानता।
क्या जानता है कोई ,
बदलती खुशियाँ बदलते गम,
सपनों के अधूरे पूरे होने
के
क्षण बादल देते हैं।
शायद, यही ज़िंदगी का सच है
बदलता वक़्त सपनों की ज़िंदगी
भी
बदल देता है।
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