सही
और गलत की कशमकश मैं उलझ कर
रह
गया है हर रिश्ता
सही
होते हुए भी गलत हो जाना
गलत
को सही मान लेना
कभी
मजबूरी है
कभी
जरूरी
रिश्तों
की गर्माहट
नजाकत
और
सजावट
सही
गलत की दायरे मैं
घूमती
रहती है
इस
पहेली को सुलझा पाना
सीधी
सड़क पर आये
अचानक
मोर जैसा है
चलते
हुए कदम का
ठिठक
कर रुक जाने जैसा है
फिर
भी सब कोशिश करते हैं
हंसी
का इनाम
तो
कभी
आँसू
का पैगाम
बदले
मैं पा जाते हैं
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