Sunday, January 20, 2013

कब.............




सीता ने पल पल राम का साथ दिया
राम ने सीता को हर बार बनवास दिया

जनक  दुलारी ने रामानुगामिनी बन कर
खामोश सहारा बन कर
भूख-प्यास को तज कर
नित नए कांटो के शूल सहे

सीता ने राम का हर कदम विश्वास किया
राम ने सीता का हर बार अविश्वास किया

कदम कदम पर सीता को
अपमान की ज्वाला में
जलना पड़ा है,
अपने को सही साबित करने के लिए
परीक्षा की अग्नि से
गुजरना पड़ा है,

हर बार एक अहिल्या
बिना अपराध के
शापित हुई है,

हर युग में नारी यूं ही
घर और बाहर
अपमानित हुई है............

कब तक चलेगा यह सिलसिला,

कब कहेगा कोई राम,
हाँ...मैं तुम्हारा विश्वास करता हूँ,
कब सोचेगा कोई पति,
हाँ, मैं, अपनी पत्नी को सही मानता हूँ,

कब.............



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