बारिश की बूंदों में
एक खास कशिश होती है
हर बूंद एक में एक
नई ज़िंदगी समाई होती है।
बादलों के आँसू
काली घटाओं के शबनमी
लड़ियों में पिरोये जाते हैं,
धरती की प्यास फिर
भी अधूरी रहती है।
पतों से लटकते मोती
कलियों में अटक जाते हैं
फूलों के सीने में लेकिन
हर पल आग सी
धधकती रहती है।
धरती के मन आँगन में
अरमानों का सैलाब दबा है,
सावनी घटाएँ मदमस्त होकर
बूंदों की पायल को
चहुं ओर खनकाती रहती हैं।
सीने से उठा बादल
कब बूंद बन कर बरस गया,
नयन नीर का मोती,
कब गालों से फिसल कर टूट गया,
‘कलम’ से निकली कहानी,
फिर भी अनजानी रहती है।
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