कुछ सवाल पूछती है ज़िंदगी,
जवाब दूँ, या खामोश रहूँ,
यह भी एक सवाल है;
गम और खुशी का मेल है ज़िंदगी,
इन्हे सौगात समझूँ, या उलझन,
हर पल यही ख़याल है;
मिलन-विछोड़ा, जीवन के दिन रात हैं,
शाश्वत-सत्य यह मान लूँ, या भुला दूँ,
हर पल उठते सवाल है;
सवाल-जवाब और उलझनों के माया-जाल
में
फंसी-उलझी ज़िंदगी, रुकूँ या चलूँ,
पल पल चलते सवाल हैं;
‘कलम’ की नोक पर सहम कर अटकी ज़िंदगी,
दर्द और खुशी के सैलाब में
डुबूँ या पार उतरूँ,
न हल होने वाले या कुछ सवाल
है।
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