Saturday, September 29, 2012

ज़िंदगी के कुछ पल


 
गुजरा हुआ हर पल ,
अंजाना सा लगता है;
ज़िंदगी से भरा पैमाना जैसा ,
तो कभी
गम का कोई फसाना सा लगता है।

समय की गोद से निकल कर,
मुसकुराता हुआ एक पल ,
मुकम्मल जहां की खुशी दे जाता है ,
वहीं एक कोने से,दूसरा पल
ज़िंदगी को कड़वा मोड दे जाता है।
 
हमनशीन, हमनफ़्ज़, हमदर्द बनकर,
साथ चला तो कभी,
वक़्त की गर्द में खो गया ,
हसीन लेकिन दुखती रग बनकर।

कुछ जाने से कुछ अनजाने,
ये पल कब किसकी हैं माने।
बस आते हैं और बस जाते हैं
ज़िंदगी भर की  याद बन कर
‘कलम’ की ज़िंदगी बन कर।

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