अंजाना सा लगता है;
ज़िंदगी से भरा पैमाना जैसा ,
तो कभी
गम का कोई फसाना सा लगता है।
समय की गोद से निकल कर,
मुसकुराता हुआ एक पल ,
मुकम्मल जहां की खुशी दे जाता है ,
वहीं एक कोने से,दूसरा पल
ज़िंदगी को कड़वा मोड दे जाता है।
साथ चला तो कभी,
वक़्त की गर्द में खो गया ,
हसीन लेकिन दुखती रग बनकर।
कुछ जाने से कुछ अनजाने,
ये पल कब किसकी हैं माने।
बस आते हैं और बस जाते हैं
ज़िंदगी भर की याद बन कर
‘कलम’ की ज़िंदगी बन कर।
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