कलियों के चेहरे
किस लिए खिले खिले रहते हैं
किस लिए गर्दन में खम
लिए नयन मूँदे रहते हैं।
क्यूँ शबनमी होठों से
मुस्कान के मोती झरते हैं,
किसके आने की आहट से ही,
गेसू सँवर जाते हैं,
बिछोने बिछा कर
सोते हुए भी जगे
जगे से रहते है
गुंचो के शहर में
यह शोर मचा है,
जमाना ज़ाहिर हैं ये बातें,
एक गुल ही हैं,
जो हर खयाल से
गाफिल से रहते हैं।
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