हर
रिश्ते को अपनाता मन
कब
कोई बहुत अकेला हो जाता है
क्या
जानता है कोई,
रिश्तों
के मेले में
हंसी
का मुखौटा पहने
कब
कहीं
खामोशी
का गहना पहना है किसी ने,
क्या
जानता है कोई,
हर
उलझन,
हर सवाल का
जवाब
देते हुए,
हर
मोड की सलवटों को
दूर
करते हुए
कब
कैसे
अपने
में ही उलझ गया कोई
क्या
जानता है कोई
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