Thursday, September 19, 2013

इंतज़ार




सभी के सीने में दर्द छुपा है
कहीं कम तो कहीं ज्यादा

सभी के लबों पर घायल मुस्कान है
सभी कहीं न कहीं वक़्त के मुलाज़िम हैं
हर कोई किसी न किसी पल मरता है
हंसी के पर्दे में अश्क छुपाता है
कहीं कम तो कहीं ज्यादा

उम्र के हर दौर में,
भागते दौड़ते पलों के साथ
अपने के साथ अपनों को
ढूंढने की कोशिश सबकी जारी है
कहीं कम तो कहीं ज्यादा



इंतज़ार ए पल की
तलाश पूरी होगी कभी
मिल ही जाता है धरती से
आसमान यूं ही, कभी कभी
कहीं कम तो कहीं ज्यादा



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