Thursday, March 2, 2017

ज़िंदगी क्या दिखाना चाहती है मुझे


कभी सूखी ज़मीन तो कभी
गीली रेत पर चलाती है मुझे,
ज़िंदगी तू बता ज़रा,
क्या दिखाना चाहती है मुझे।

हर रंग को तेरे अपनाया है मैंने,
हर ढंग से जिंदगी को जिया है मैंने,
फिर भी नाखुश है तू बता,
और क्या रंग-ढंग दिखाना चाहती है मुझे।

फूल-कांटे एक दामन में समेटे हैं मैंने,
हर सुर के गीत सभी लबों पे सजाये हैं मैंने,
फिर भी सुर खामोश क्यूँ है,
कौन सा सुर से सजाना चाहती है मुझे।

थकूँगी नहीं, रुकूँगी नहीं, गिरूंगी नहीं,
ये ठाना है आज मैंने,
“लेखनी” की लय में बहुत ताकत है अभी,
जिंदगी यही बताना चाहती हूँ तुझे।




Friday, July 8, 2016

बचपन


निंदियाई आँखों को खोल कर
मंद-मंद मुस्काता बचपन,
बंद मुट्ठी को बार बार तान कर
मेरी ओर हाथ बढ़ाता बचपन।

घुटने के बल सरक कर,
डगमगाता सम्हल्ता बचपन,
तुतलाते बोलों से मन आँगन
जीवन बगिया महकाता बचपन।

मिट्टी के घरोंदों में घर ढूँढता,
पापा के जूते पहन ऑफिस जाता बचपन,

भूख नहीं कहकर मचलता, ज़िद करके
अपनी ही बात मनवाता बचपन।

पीछे मुढ़ कर,दूर तक देखने पर भी,
न दिखाई देता है बचपन,
आज खाली कागज सी जिंदगी पर
आड़ी-तिरछी लकीरें खिचने वाला बचपन,

याद आता है, वो भोला बचपन,
जिंदगी के सफर में,
किसी अंजान स्टेशन पर उतर गया
जैसे वो अंजान मुसाफिर का बचपन,
क्या मिल सकता है, फिर से
वो हमारा खोया बचपन,
मुंह-मांगी कीमत देकर भी
वापस लौटाया जा सकता है बचपन।



Sunday, June 5, 2016

रिश्ते


रिश्ते जिंदगी है या जिंदगी से रिश्ते,


जिंदगी बीत गयी बनते बिगड़ते,


रिश्तों की जिंदगी और जिंदगी के रिश्ते।





मन की डोर से बंधे,


सहलाते, बहलाते,लुभाते, मन के रिश्ते,


प्यार से झुकते,प्यार के लिए झुकते,


मन से जुड़े, मन तक जुड़े,


रुलाते, हँसाते, जिंदगी के रिश्ते।





जाने-पहचाने, फिर भी अनजाने,


मन से बांधे, फिर भी मन से बेगाने,


क्यूँ ये होते हैं, मन के दीवाने,


रिश्तों से पहचान, पहचान से रिश्ते,


अनजाने-पहचाने जिंदगी के रिश्ते।






मुश्किल से जुड़ते,पल में टूट जाते,


सिमटते, बिखरते, बनते, संवरते,


यादों में बसते, खुद याद बन जाते,


यादों से निकल सामने आ जाते,


भूले भटके, जिंदगी के रिश्ते।





होठों की मुस्कान, जीने का अरमान,


खुद से खुद की पहचान कराते ये रिश्ते,


आँखों के आँसू, साँसो की डोर,


सीने में काँच जैसे चुभते ये रिश्ते,


कोमल नाजुक कुछ कठोर ये रिश्ते।





शब्द बनकर कागज पर उतरते,


गीत बनकर होठों पर सजते,


भाव बनकर गीत बन जाते,


अहसास बनकर गजल बन जाते,


लेखनी की स्याही में सिमटते ये रिश्ते।






Sunday, April 17, 2016

कुछ पल

कुछ पल
बीते पलों को पीछे छोड़ कर,
गुजरे पलों का इतिहास बना कर,
कुछ नए पल ढूंढ कर लाएँ,
आज चलो, नए कुछ पल सजाएँ।

पल जो बीता, वो माना बीत गया,

अब होठों पर सजा एक गीत नया,
आँखों में बसा कुछ स्वप्न नए,
आज चलो, नए कुछ पल सजाएँ।

बीते पलों ने कुछ आँसू दिये,
कुछ हंसी तो कुछ अरमान दिये,
सारे ख़ज़ाने से कुछ मोती बीन लाएँ,
आज चलो, नए कुछ पल सजाएँ।

अरमान नए, कुछ स्वप्न नए,
जीवन-आकाश के इंद्र्धनुष नए,
होली से रंग, दीवाली की चमक चुराएँ,
आज चलो, नए कुछ पल सजाएँ।

नए दस्तखत, नए अल्फ़ाज़,
नयी लेखनी की नयी रोशनाई,
नयी दुनिया में पहचान नयी बनाने,
आज चलो, नए कुछ पल सजाएँ।







Thursday, December 31, 2015

एक नयी शुरुआत


पल बीता, कल बीता,
लो आज एक नयी सुबह हुई,
नए सपनों, नए रंगो की,
एक नयी शुरुआत हुई।

क्या खोया, क्या पाया,
क्या मिला और क्या गवाया
हमने,
सब भूल के चलो आगे बड़ें,
इस नयी सोच के साथ
एक नए सपने, नए होंसले की
आज फिर एक बात हुई,
नए सपनों, नए रंगो की,
एक नयी शुरुआत हुई।


कुछ ठोकर, कुछ पत्थर,
कुछ घाव तो कहीं कुछ कांटे मिले,
फूल कहीं तो हंसी कहीं पर
और कहीं कुछ ख्वाब भी मिले,
मिलना-बिछड़ना के मेल से आगे,
और अनेक बात हुई,
नए सपनों, नए रंगो की,
एक नयी शुरुआत हुई।


इंद्र्धानुषी रंगो को लेकर
आज कुछ नए स्वप्न बुने,
राह में बिखरे कांटो से हटकर,
फूलों सजाकर,एक नयी राह चुनें,
नयी उमंग, नयी तरंग,नए हौंसलों
को लिए मन में,नयी सुबह की बात हुई,
नए सपनों, नए रंगो की,
एक नयी शुरुआत हुई।
ठिठक कर पीछे न देखने की,
मन से मन की बात हुई,
“कलम” में नयी स्याही भर कर,
नयी लिखावट की शुरुआत हुई,
नए सपनों, नए रंगो की,
एक नयी शुरुआत हुई।





Tuesday, December 22, 2015

सवाल-जवाब



कुछ सवाल पूछती है ज़िंदगी,
जवाब दूँ, या खामोश रहूँ,
यह भी एक सवाल है;

गम और खुशी का मेल है ज़िंदगी,
इन्हे सौगात समझूँ, या उलझन,
हर पल यही ख़याल है;

मिलन-विछोड़ा, जीवन के दिन रात हैं,
शाश्वत-सत्य यह मान लूँ, या भुला दूँ,
हर पल उठते सवाल है;

सवाल-जवाब और उलझनों के माया-जाल में
फंसी-उलझी ज़िंदगी, रुकूँ या चलूँ,
पल पल चलते सवाल हैं;

कलम की नोक पर सहम कर अटकी ज़िंदगी,
दर्द और खुशी के सैलाब में डुबूँ या पार उतरूँ,
न हल होने वाले या कुछ सवाल है।